कहानी का परिचय
‘स्वर्णकाकः – सोने का कौआ’ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित “विश्वकथाशतकम्” नामक संग्रह से ली गई एक प्रसिद्ध लोककथा है। यह कथा म्यांमार देश की श्रेष्ठ लोककथाओं में से एक है। इस कथा में एक स्वर्णपंखों वाले कौवे के माध्यम से लोभ और त्याग के परिणामों को दिखाया गया है। यह न केवल एक रोचक कहानी है, बल्कि बच्चों को नैतिक शिक्षा भी देती है।
कहानी का सारांश
बहुत समय पहले एक गाँव में एक गरीब बूढ़ी स्त्री अपनी विनम्र और सुंदर पुत्री के साथ रहती थी। एक दिन माँ ने बेटी से कहा कि वह धूप में रखे चावलों की रक्षा करे। तभी एक सोने के पंखों और चाँदी की चोंच वाला विचित्र कौआ आया और चावल खाने लगा। लड़की ने उसे रोका और गरीबी की बात बताई। कौआ प्रसन्न हुआ और अगले दिन सुबह गाँव के बाहर पीपल के पेड़ के पास बुलाया, जहाँ उसका सोने का महल था।

उसने लड़की से सीढ़ी चुनने को कहा – सोने, चाँदी या ताँबे की। विनम्र लड़की ने ताँबे की सीढ़ी चुनी, पर उसे सोने की सीढ़ी दी गई। महल में उसे स्वादिष्ट भोजन भी सोने की थाली में मिला। जाते समय तीन बक्से दिए गए, जिनमें से लड़की ने सबसे छोटा बक्सा चुना। उसमें हीरे थे, और वह अमीर बन गई।

उसी गाँव में एक लालची बुढ़िया रहती थी, जिसकी एक बेटी थी। उसने ईर्ष्या में आकर वही प्रक्रिया दोहराई। लेकिन उसकी बेटी घमंडी थी, उसने सोने की सीढ़ी माँगी और कौए से बद्तमीज़ी की। कौए ने उसे ताँबे की सीढ़ी दी और ताँबे के बर्तन में भोजन कराया। जाते समय उसने सबसे बड़ा बक्सा लिया, पर उसमें से काला भयानक साँप निकला। उसे अपने लोभ का फल मिला और उसने लोभ त्याग दिया।

कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो लोग सच्चे, विनम्र और संतोषी होते हैं, उन्हें अच्छे फल मिलते हैं। लेकिन जो लोग घमंडी और लालची होते हैं, उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए हमें हमेशा ईमानदार, नम्र और संतोषी बनकर रहना चाहिए।
शब्दार्थ
- संस्कृत शब्द – हिंदी अर्थ
- स्वर्णकाकः – सोने का कौआ
- निर्धना – गरीब
- विनम्रा – विनम्र, नम्र
- तण्डुलाः – चावल
- पिप्पलवृक्षः – पीपल का पेड़
- प्रासादः – महल
- सोपानम् – सीढ़ी
- स्थाल्या – थाली
- भोजनम् – भोजन
- मञ्जूषा – बक्सा
- हीरकाणि – हीरे
- कृष्णसर्पः – काला साँप
- लोभाविष्टा – लालच से भरी हुई
- लघुतमां – सबसे छोटा
- बृहत्तमां – सबसे बड़ा