07. वर्षा बहार – पाठ नोट्स

कवि परिचय

मुकुटधर पांडेय एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर (1895–1989) में हुआ था। उनकी कविताएँ प्रकृति की सुंदरता को दर्शाती हैं और सरल भाषा में लिखी गई हैं। उन्होंने किशोरावस्था से ही कविताएँ और लेख लिखना शुरू कर दिया था। उनकी रचनाएँ उस समय की पत्रिकाओं जैसे सरस्वती और माधुरी में छपती थीं। हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा। 

मुख्य विषय

कविता वर्षा-बहार का मुख्य विषय वर्षा ऋतु की सुंदरता और प्रकृति में उसके प्रभाव का वर्णन है। यह कविता वर्षा के कारण होने वाली खुशी, हरियाली, और जीवन के उत्साह को दर्शाती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न दृश्यों जैसे बादल, बिजली, हवा, फूल, और जीव-जंतुओं के माध्यम से वर्षा की महिमा को बताया है। यह कविता प्रकृति के प्रति प्रेम और उसकी शोभा को बढ़ाने में वर्षा के महत्व को उजागर करती है।

कविता का सार

कवि मुकुटधर पांडेय ने वर्षा-बहार में वर्षा ऋतु की सुंदरता का चित्रण किया है। कविता में आकाश में छाए घने बादल, चमकती बिजली, गरजते मेघ, और बहते झरनों का वर्णन है। ठंडी हवा के साथ पेड़ों की डालियाँ हिलती हैं, और बगीचों में मालिनें गीत गाती हैं। तालाबों में जलचर जीव खुश होते हैं, और पपीहे गर्मी की तपिश को भूल जाते हैं। मोर जंगल में नृत्य करते हैं, मेंढक मधुर गीत गाते हैं, और गुलाब की खुशबू हवा में फैलती है। बगीचों में खुशी छा जाती है, और हंस सुंदर कतार में चलते हैं। किसान खेतों में गीत गाते हुए काम करते हैं। कवि कहते हैं कि वर्षा की यह अनोखी सुंदरता पूरी दुनिया की शोभा को बढ़ाती है, और प्रकृति का सारा सौंदर्य वर्षा पर निर्भर है।

कविता की व्याख्या

पहला प्रसंग 

वर्षा-बहार सब के, मन को लुभा रही है
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है।

व्याख्या: बरसात का मौसम सबको बहुत अच्छा लग रहा है। चारों तरफ हरियाली और ठंडी हवा का सुंदर नज़ारा दिख रहा है। आकाश में काले-घने बादल छा गए हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लग रहे हैं।

दूसरा प्रसंग 

बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं
पानी बरस रहा है, झरने भी ये बहे हैं।

व्याख्या: बिजली चमक रही है और बादल जोर-जोर से गरज रहे हैं। तेज बारिश हो रही है और पहाड़ों से झरने भी तेज़ी से बहने लगे हैं। ये सब मिलकर वर्षा का सुंदर दृश्य बनाते हैं।

तीसरा प्रसंग 

चलती हवा है ठंडी, हिलती हैं डालियाँ सब
बागों में गीत सुंदर, गाती हैं मालिनें अब।

व्याख्या: ठंडी हवा के कारण पेड़ों की डालियाँ हिल रही हैं। बगीचों में मालिनें (महिलाएँ) सुंदर गीत गा रही हैं, जो माहौल को और खुशनुमा बनाता है।

चौथा प्रसंग 

तालों में जीव जलचर, अति हैं प्रसन्न होते
फिरते लखो पपीहे, हैं ग्रीष्म ताप खोते।

व्याख्या: तालाबों में जलचर जीव (जैसे मछलियाँ) बहुत खुश हैं। पपीहे (पक्षी) गर्मी की तपिश को भूलकर इधर-उधर उड़ रहे हैं।

पांचवा प्रसंग 

करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे
मेंढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे।

व्याख्या: जंगल में मोर नाच रहे हैं, जो बहुत सुंदर दिखता है। मेंढक अपनी टर-टर ध्वनि से मधुर गीत गा रहे हैं, जो सभी को आकर्षित करता है।

छठा प्रसंग

खिलता गुलाब कैसा, सौरभ उड़ा रहा है
बागों में खूब सुख से, आमोद छा रहा है।

व्याख्या: गुलाब के फूल पूरी तरह खिल गए हैं और उनकी मीठी खुशबू हवा में फैल रही है। बगीचों में हर जगह आनंद और खुशी का माहौल है।

सातवां प्रसंग

चलते हैं हंस कहीं पर, बाँधे कतार सुंदर
गाते हैं गीत कैसे, लेते किसान मनहर।

व्याख्या: हंस सुंदर कतार में चलते हैं, जो बहुत आकर्षक लगता है। किसान खेतों में काम करते हुए मधुर गीत गाते हैं, जो उनके मन को प्रसन्न करता है।

आठवां प्रसंग

इस भाँति है अनोखी, वर्षा बहार भू पर
सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके ऊपर।

व्याख्या: कवि कहता है कि बारिश की सुंदरता अनोखी होती है। धरती की सारी सुंदरता और हरियाली बारिश पर ही निर्भर करती है। बारिश के बिना जीवन अधूरा लगता है।

कविता से शिक्षा

इस कविता से हमें यह सिखने को मिलता है कि प्रकृति की हर ऋतु विशेष होती है और जीवन के लिए आवश्यक है। वर्षा ऋतु न केवल धरती को हरा-भरा बनाती है बल्कि सभी जीवों को आनंद और राहत भी देती है। हमें प्रकृति के इन सुंदर परिवर्तनों का आनंद लेना चाहिए और उनका आदर करना चाहिए।

शब्दार्थ

  • वर्षा-बहार: बारिश की सुंदरता और खुशी।
  • नभ: आकाश।
  • छटा: सुंदर दृश्य।
  • घनघोर: घने बादल।
  • सौरभ: खुशबू।
  • आमोद: आनंद, खुशी।
  • जलचर: पानी में रहने वाले जीव।
  • पपीहे: एक प्रकार का पक्षी।
  • ग्रीष्म ताप: गर्मी की गर्माहट।
  • मनहर: मन को आकर्षित करने वाला।
  • निर्भर: आधारित, टिका हुआ।