मीरा एक महान हिंदी कवयित्री, कृष्ण भक्त और संत थीं, जिन्होंने लगभग 500 साल पहले ये कविताएँ लिखी थीं। उनका जन्म राजस्थान में हुआ था और वे बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबी रहती थीं। राजकुमारी होने के बावजूद उन्होंने सादा जीवन चुना और महलों को छोड़कर तीर्थ यात्राएँ कीं। मंदिरों में भजन गाए और संतों की संगति में रहकर भगवान की भक्ति की। उनके भजन आज भी लोग श्रद्धा और प्रेम से गाते और सुनते हैं।
मुख्य विषय
यह कविता मीरां की कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति को व्यक्त करती है। इसमें मीरां अपने नयन (आँखों) से कृष्ण को देखने की इच्छा, उनके प्रेम में रंगीनी और उनकी पूजा करती हुई भक्ति का वर्णन करती हैं। कविता में प्रकृति की सुंदरता, जैसे बारिश, शीतल हवा और ताजगी, कृष्ण के प्रेम के साथ जुड़ी हुई है। मीरां के भजन में कृष्ण के दर्शन के लिए उनकी उत्कट तड़प और प्रेम का चित्रण किया गया है।
पद का सारपहला पद: बसो मेरे नैनन में नंदलाल
इस पद में मीरा भगवान कृष्ण की सुंदरता का बखान करती हैं। वे कहती हैं कि कृष्ण की मोहक मूर्ति, साँवली सूरत और बड़ी-बड़ी आँखें उनके मन को लुभाती हैं। कृष्ण के होंठों पर मुरली शोभा देती है और उनके गले में वैजयंती माला सुंदर लगती है। उनकी कमर पर छोटी घंटियाँ और पैरों में नूपुर की मधुर आवाज़ मन को आनंद देती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रभु कृष्ण संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रिय गोपाल हैं।
दूसरा पद: बरसे बदरिया सावन की
इस पद में मीरा सावन के मौसम का वर्णन करती हैं। सावन की बारिश और ठंडी हवा उनके मन को खुश करती है। उन्हें लगता है कि बादलों की गड़गड़ाहट और बारिश की बूँदें भगवान कृष्ण के आने की खबर ला रही हैं। मीरा का मन उमंग से भर जाता है। वे अपने प्रभु गिरधरनागर की भक्ति में आनंद और मंगल गीत गाती हैं।
पद की व्याख्या
पहला पद: बसो मेरे नैनन में नंदलाल
बसो मेरे नैनन में नंदलाल। मोहिनी मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल॥ अधर सुधा रस मुरली राजति, उर वैजंती माल॥ क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल॥ मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल॥
व्याख्या: इस पद में मीरा अपने दिल की गहरी भावना को व्यक्त करती हैं। वह भगवान श्री कृष्ण को अपने नैनों (आँखों) में बसाने की प्रार्थना करती हैं। मीरा कहती हैं कि उनके लिए भगवान कृष्ण की सुंदरता और रूप मोहक (आकर्षक) है, भगवान कृष्ण के रूप को देखकर उनके नैन इतने विशाल हो गए हैं, मानो उस सुंदर छवि को पूरी तरह समेट लेना चाहते हों। मीरा के गले में भगवान कृष्ण की वैजंती माला शोभा देती है, जो उनके प्रेम का प्रतीक है। मीरा कृष्ण के भगवान रूप में नूपुर की आवाज़ और घंटियों के संगीत को भी महसूस करती हैं, जो उनके दिल को खुश कर देती है। वह कहती हैं कि भगवान कृष्ण अपने भक्तों के लिए सुख देने वाले और उनकी रक्षा करने वाले हैं।
दूसरा पद: बरसे बदरिया सावन की
बरसे बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की। सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की॥ उमड़ घुमड़ चहुँ दिश से आया, दामिन दम कै झर लावन की। नन्हीं नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सोहावन की॥ मीरा के प्रभु गिरधरनागर, आनंद मंगल गावन की॥
व्याख्या: इस पद में मीरा सावन (मूसलधार बारिश) के मौसम का वर्णन करती हैं। वह कहती हैं कि जैसे ही सावन की घटाएँ आईं, उनका मन भी खुशी से उमड़ने लगा। बारिश की बूँदें मानो भगवान कृष्ण के आगमन की आहट सुना रही हों। मीरा अपने मन को कृष्ण के प्रेम में समर्पित करती हैं, और बारिश के मौसम में शीतल पवन से आनंद महसूस करती हैं। यह बारिश और ठंडी हवा उनके दिल को शांति और सुख देती है। मीरा कृष्ण को गिरधरनागर, यानी गोवर्धन को उठाने वाले अपने प्रिय प्रभु के रूप में देखती हैं, जो उनके जीवन में खुशी और मंगल लाते हैं।
पद से शिक्षा
इन पदों से हमें भक्ति और प्रेम की सीख मिलती है। मीरा हमें बताती हैं कि सच्ची भक्ति में मन को शांति और आनंद मिलता है। हमें भगवान के प्रति प्रेम और विश्वास रखना चाहिए। सावन के मौसम का वर्णन हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है। हमें छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढनी चाहिए और दूसरों के लिए अच्छे विचार रखने चाहिए।
आरसी प्रसाद सिंह एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और लेखक हैं, जो अपनी रचनाओं में प्रकृति, मानवता, और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को चित्रित करते हैं। उनकी कविताएँ सरल और स्पष्ट भाषा में लिखी गई हैं, जिससे बच्चों और युवाओं के लिए उन्हें समझना आसान होता है। उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से समाज में प्रेम, करुणा, और त्याग की भावना फैलाने का प्रयास किया। “चिड़िया” कविता में उन्होंने छोटे जीवों के माध्यम से मानवता और प्रकृति के बीच संबंध को प्रदर्शित किया है।
मुख्य विषय
कविता का मुख्य विषय चिड़िया के जीवन के माध्यम से मानव को स्वतंत्रता, सहयोग और सादगी का संदेश देना है। यह कविता प्रकृति से प्रेरणा लेकर मानव जीवन को बेहतर बनाने की सीख देती है। कवि चिड़िया के गुणों जैसे लोभ न करना, मिल-जुलकर रहना और स्वच्छंद जीवन जीना आदि को मानव के लिए प्रेरणादायक बताते हैं। यह कविता हमें अपनी बेड़ियों (बंधनों) को तोड़कर स्वतंत्र और सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
कविता का सार
कवि आरसी प्रसाद सिंह ने चिड़िया कविता में चिड़िया के जीवन को प्रकृति का सुंदर उदाहरण बताया है। चिड़िया पीपल की ऊँची डाली पर बैठकर गाती है और अपनी बोली में प्रेम, एकता और मुक्ति का संदेश देती है। वह वन में अन्य पक्षियों जैसे खंजन, कपोत, चातक, कोकिल, काक, हंस और शुक के साथ मिल-जुलकर रहती है। चिड़िया और अन्य पक्षी आसमान को अपना घर मानते हैं और जहाँ चाहें, वहाँ चले जाते हैं। वे दिन में मेहनत करते हैं और रात को पेड़ों पर सो जाते हैं। उनके मन में लोभ, पाप या चिंता नहीं होती। वे अपने श्रम से जितना मिलता है, उतना ही लेते हैं और बाकी दूसरों के लिए छोड़ देते हैं। वे बिना डर के आकाश में उड़ते हैं और औरों की कमाई से अपना घर नहीं भरते। चिड़िया मानव से कहती है कि वह उनसे सीखे और बंधनों को तोड़कर स्वतंत्र और मानवतापूर्ण जीवन जिए। अंत में, चिड़िया गाकर अपना संदेश देती है और फिर उड़ जाती है।
कविता की व्याख्या
पहला प्रसंग
पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है! तम्हें ज्ञात क्या अपनी बोली में संदेश सुनाती है?
व्याख्या: यह कविता चिड़ीया के बारे में है, जो पीपल के पेड़ की ऊँची डाली पर बैठकर गाती है। चिड़ीया अपनी बोली में हमें एक संदेश देती है, जो हमें जीवन के बारे में कुछ सिखाता है।
दूसरा प्रसंग
चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है! वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है!
व्याख्या: चिड़ीया हमें प्रेम और दोस्ती की अहमियत सिखाती है। वह कहती है कि लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहें। चिड़ीया यह भी बताती है कि हमें अपने जीवन को स्वतंत्रता से जीना चाहिए।
तीसरा प्रसंग
वन में जितने पंछी हैं, खंजन कपोत, चातक, कोकिल; काक, हंस, शुक आदि वास करते सब आपस में हिलमिल!
व्याख्या: यहां कवि बताते हैं कि जंगल में बहुत से पक्षी रहते हैं जैसे खंजन, कपोत, चातक, कोयल, काक, हंस और शंख। ये सब पक्षी मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हम सभी को एक-दूसरे से प्रेम से रहना चाहिए।
चौथा प्रसंग
सब मिल-जुलकर रहते हैं वे सब मिल-जुलकर खाते हैं; आसमान ही उनका घर है; जहाँ चाहते, जाते हैं!
व्याख्या: पक्षी मिलकर रहते हैं, मिलकर खाते हैं और उनका घर आसमान होता है। वे जहां चाहें जाते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए और जीवन को खुलकर जीना चाहिए।
पांचवा प्रसंग
रहते जहाँ, वहाँ वे अपनी दुनिया एक बसाते हैं; दिन भर करते काम, रात में पेड़ों पर सो जाते हैं!
व्याख्या: पक्षी जहाँ रहते हैं, वहाँ वे अपनी छोटी सी दुनिया बनाते हैं। वे दिन में काम करते हैं और रात में पेड़ों पर सो जाते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हमें मेहनत करनी चाहिए और आराम भी करना चाहिए।
छठा प्रसंग
उनके मन में लोभ नहीं है, पाप नहीं, परवाह नहीं; जग का सारा माल हड़पकर जाने की भी चाह नहीं।
व्याख्या: पक्षियों के मन में किसी चीज़ का लालच नहीं होता। वे जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, वही लेते हैं और ज्यादा पाने की कोई इच्छा नहीं रखते। वे दूसरों का नुकसान नहीं करते। यह हमें सिखाता है कि हमें भी ज्यादा की इच्छा नहीं रखनी चाहिए और जो मिल जाए, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।
सातवां प्रसंग
जो मिलता है अपने श्रम से, उतना भर ले लेते हैं; बच जाता जो, औरों के हित, उसे छोड़ वे देते हैं!
व्याख्या: पक्षी सिर्फ अपनी मेहनत से जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, वही लेते हैं और जो बचता है, उसे दूसरों के लाभ के लिए छोड़ देते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मेहनत का फल तो लेना चाहिए, लेकिन दूसरों के भले के लिए कुछ छोड़ देना चाहिए।
आठवां प्रसंग
सीमा-हीन गगन में उड़ते, निर्भय विचरण करते हैं; नहीं कमाई से औरों की अपना घर वे भरते हैं!
व्याख्या: पक्षी आकाश में उड़ते हैं, उनके पास कोई सीमा नहीं होती। वे स्वतंत्र रहते हैं और बिना किसी पर निर्भर हुए अपने घर को पूरा करते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हमें भी आत्मनिर्भर होना चाहिए और अपनी आज़ादी की कद्र करनी चाहिए।
नौवां प्रसंग
वे कहते हैं, मानव! सीखो तुम हमसे जीना जग में; हम स्वच्छंद और क्यों तुमने डाली है बेड़ी पग में?
व्याख्या: पक्षी मानव से कहते हैं, “हमें देखो, हम स्वतंत्र रूप से जीते हैं, तुम भी हमारे जैसा जीने की कोशिश करो।” वे यह पूछते हैं कि मानव ने अपनी पग में बेड़ी क्यों डाली है, जबकि पक्षी आकाश में स्वतंत्र रूप से उड़ते हैं। यह हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें भी स्वतंत्रता से जीना चाहिए।
दसवां प्रसंग
तुम देखो हमको, फिर अपनी सोने की कड़ियाँ तोड़ो; ओ मानव! तुम मानवता से द्रोह-भावना को छोड़ो!
व्याख्या: पक्षी मानव को उनकी आज़ादी देखने और अपने बंधनों को तोड़ने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि मानव को बुरे विचार छोड़कर मानवता को अपनाना चाहिए।
ग्यारहवां प्रसंग
पीपल की डाली पर चिड़िया, यही सुनाने आती है बैठ घड़ी भर, हमें चिंतित कर, गा-कर फिर उड़ जाती है।
व्याख्या: चिड़िया पीपल की डाल पर बैठकर यह संदेश देती है। वह कुछ देर गाकर मानव को सोचने पर मजबूर करती है और फिर उड़ जाती है।
कविता से शिक्षा
इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्रकृति और चिड़िया से सादगी, स्वतंत्रता और सहयोग का गुण सीखना चाहिए। हमें लोभ, बुराई और बंधनों से मुक्त होकर प्रेम और एकता के साथ जीवन जीना चाहिए। यह कविता हमें मेहनत, संतोष और दूसरों के लिए त्याग की भावना अपनाने की प्रेरणा देती है। हमें अपनी मानवता को बनाए रखते हुए बुरे विचारों को छोड़ना चाहिए।
यह पाठ एक साक्षात्कार है, जिसमें पंडित बिरजू महाराज, जो कथक नृत्य के विश्व प्रसिद्ध कलाकार हैं, अपने जीवन और कथक के बारे में बच्चों से बातचीत करते हैं। बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ के प्रसिद्ध कथक घराने में हुआ था। उनके पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज तथा लच्छू महाराज भी कथक के महान कलाकार थे। बिरजू महाराज ने बचपन से ही कथक सीखा और इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी प्रस्तुतियाँ भारत और विदेशों में बहुत लोकप्रिय रही हैं। उन्हें उनकी कला के लिए पद्मविभूषण सहित कई सम्मान प्राप्त हुए। बिरजू महाराज न केवल नर्तक हैं, बल्कि गायक, वादक और रचनाकार भी हैं।
मुख्य विषय
इस साक्षात्कार का मुख्य विषय कथक नृत्य, उसकी परंपरा और बिरजू महाराज का जीवन है। यह पाठ कथक की उत्पत्ति, इसके घरानों, और इसकी सुंदरता को दर्शाता है। साथ ही, यह बिरजू महाराज के संघर्ष, उनकी मेहनत, और कथक के प्रति उनके प्रेम को उजागर करता है। यह बच्चों को संगीत और नृत्य के प्रति प्रेरित करता है, और बताता है कि मेहनत और लगन से कोई भी अपने सपनों को पूरा कर सकता है। साथ ही यह लय, अनुशासन, और परंपरा के महत्व को भी समझाता है।
कहानी की मुख्य घटनाएँ
बिरजू महाराज का बचपन आर्थिक तंगी में बीता, लेकिन उनकी माँ ने उन्हें कथक का अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने अपने पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज, और लच्छू महाराज से कथक सीखा और नवाब के दरबार में नाचने लगे।
कथक की तालीम शुरू होने पर उनकी माँ ने उनके कार्यक्रमों की कमाई गुरु को भेंट के रूप में दी, जिसके बाद गंडा बाँधा गया।
बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा बदली और अब शिष्य की लगन देखकर ही गंडा बाँधते हैं।
उन्होंने बताया कि पढ़ाई और नौकरी के साथ नृत्य करना संभव है, जैसा उनकी शिष्या शोभना नारायण करती हैं।
कथक की शुरुआत मंदिरों में कथा कहने से हुई, और लखनऊ, जयपुर, बनारस, रायगढ़ घरानों ने इसे विकसित किया।
हरिया गाँव की कहानी जहाँ कथकों ने अपनी कला से डाकुओं को मंत्रमुग्ध किया।
बिरजू महाराज ने कथक में नई चीजें जोड़ीं, जैसे भाव-भंगिमाएँ और आधुनिक कवियों की रचनाएँ।
पहले कथक चाँदनी पर होता था, अब प्रस्तुति का तरीका बदल गया है।
बिरजू महाराज ने छोटी उम्र में तबला, हारमोनियम, और गायन सीखा।
उन्होंने लोक और शास्त्रीय नृत्य के अंतर को समझाया और शास्त्रीय नृत्य की स्थिति पर विचार व्यक्त किए।
खाली समय में वे मशीनें ठीक करते हैं और चित्रकारी करते हैं।
उन्होंने बच्चों को संगीत और नृत्य सीखने की सलाह दी और लड़कियों के लिए आत्मनिर्भरता पर जोर दिया।
कहानी का सार
कथक कला में महारत: कथक कला की बात करते हुए बिरजू महाराज का नाम हमेशा सामने आता है। उन्होंने इस कला को विरासत में प्राप्त किया था और आज न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी उनकी प्रस्तुतियों को सराहा जाता है। उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने कठोर साधना से सफलता प्राप्त की। वे मानते हैं कि जीवन में उतार-चढ़ाव होते हैं, और यह समय का चक्र है। अपने संघर्ष के दौरान उनकी सबसे बड़ी सहयोगी उनकी माँ थीं, जिन्होंने कठिनाइयों का सामना किया, कभी कागज और सुनहरे तार बेचकर परिवार का पालन-पोषण किया।
बचपन का अनुभव: बिरजू महाराज ने अपने बचपन के बारे में बताया कि उनका परिवार एक समय नवाब के घराने जैसा था, जहां हवेली में आठ सिपाही पहरा देते थे। लेकिन उनके पिता के निधन के बाद परिवार को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि कई बार खाना भी नहीं मिलता था, लेकिन उनकी माँ ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया कि अभ्यास करना बहुत महत्वपूर्ण है, भले ही खाने के लिए कुछ न मिले।
कथक की शिक्षा: बिरजू महाराज ने कथक कला अपने घर से ही सीखी। उनके पिता और चाचा प्रसिद्ध कथक गुरु थे। उन्होंने बताया कि घर में हमेशा कथक का माहौल था, जिससे वे औपचारिक शिक्षा शुरू करने से पहले ही कथक सीख गए थे। जब वे अपने गुरु से कथक की शिक्षा लेने गए, तो उन्हें ‘गंडा’ (ताबीज़) बांधने की परंपरा के बारे में बताया गया, जो गुरु और शिष्य के बीच एक पवित्र संबंध को दर्शाता है। उन्होंने यह परंपरा उलटकर यह नियम अपनाया कि जब शिष्य में सच्ची लगन दिखाई दे, तभी उन्हें गंडा बांधते हैं।
कथक के साथ अन्य गतिविधियां: कथक के अलावा, बिरजू महाराज ने गाना, बजाना और अभिनय भी किया। वे मानते हैं कि गाना, बजाना और नाचना तीनों संगीत का हिस्सा होते हैं और बिना लय के कोई भी कला पूर्ण नहीं हो सकती। इसके अलावा, बिरजू महाराज ने अपने कथक प्रस्तुतियों में भाव-भंगिमाओं और शास्त्रीय संगीत के तत्वों को जोड़कर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
शास्त्रीय और लोक नृत्य में अंतर: बिरजू महाराज ने शास्त्रीय और लोक नृत्य में अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि लोक नृत्य सामूहिक होता है, जबकि शास्त्रीय नृत्य एक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और यह दर्शकों के लिए होता है। शास्त्रीय नृत्य में लय और अनुशासन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। बिरजू महाराज ने कथक को शास्त्रीय नृत्य की धारा में लाकर इसे और अधिक विस्तृत किया और इसके भाव-भंगिमाओं को लोकनृत्य से जोड़ा।
कथक के बदलाव: कथक के क्षेत्र में उन्होंने कुछ बदलाव किए, जैसे कि प्रस्तुति के तरीके में नया दृष्टिकोण। वे मानते हैं कि कथक के प्रस्तुतकर्ता को अपनी कला में नवीनता और गहराई लानी चाहिए। उन्होंने बताया कि पहले नृत्य की प्रस्तुति मच पर चांदनी बिछाकर होती थी, लेकिन अब कलाकारों को दर्शकों की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है।
कला के प्रति समर्पण: बिरजू महाराज का मानना है कि कला और संगीत एक तरह का आध्यात्मिक साधना है। वे संगीत और नृत्य को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते हैं, जो व्यक्ति को संतुलित और अनुशासित बनाता है। वे मानते हैं कि हर बच्चे को संगीत और नृत्य सीखना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें आत्मनिर्भर और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
कला का समर्पण और परिवार: उन्होंने अपनी बेटियों को कथक सिखाया, क्योंकि वे मानते थे कि हर महिला को आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि आजकल के माता-पिता को बच्चों की रुचियों का समर्थन करना चाहिए, चाहे वह संगीत हो, नृत्य हो या अन्य कोई कला। इस तरह से बच्चों के बौद्धिक और शारीरिक विकास के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है।
कहानी से शिक्षा
इस साक्षात्कार से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मेहनत, लगन और अनुशासन से जीवन की किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। बिरजू महाराज का जीवन दर्शाता है कि मुश्किल हालात में भी अभ्यास और समर्पण से सफलता हासिल की जा सकती है। संगीत और नृत्य न केवल मन को शांति देते हैं, बल्कि अनुशासन, संतुलन और सहयोग की भावना भी सिखाते हैं। हमें अपनी परंपराओं का सम्मान करना चाहिए और आत्मनिर्भर बनने के लिए हुनर सीखना चाहिए।
शब्दार्थ
साक्षात्कार: किसी व्यक्ति से प्रश्न-उत्तर के माध्यम से बातचीत।
कथक: एक शास्त्रीय नृत्य शैली, जो कथा कहने से उत्पन्न हुई।
घराना: संगीत या नृत्य की एक विशिष्ट शैली या परंपरा।
गंडा: गुरु द्वारा शिष्य को दिया जाने वाला ताबीज, जो गुरु-शिष्य के रिश्ते को दर्शाता है।
लय: संगीत और नृत्य में ताल या गति।
भाव-भंगिमा: चेहरे और शरीर की मुद्राएँ, जो भावनाएँ व्यक्त करती हैं।
परंपरा: पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही प्रथा।
आत्मनिर्भर: स्वयं पर निर्भर होना।
हुनर: कौशल या कला।
मंत्रमुग्ध: किसी चीज से इतना प्रभावित होना कि उसमें खो जाना।
मुकुटधर पांडेय एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर (1895–1989) में हुआ था। उनकी कविताएँ प्रकृति की सुंदरता को दर्शाती हैं और सरल भाषा में लिखी गई हैं। उन्होंने किशोरावस्था से ही कविताएँ और लेख लिखना शुरू कर दिया था। उनकी रचनाएँ उस समय की पत्रिकाओं जैसे सरस्वती और माधुरी में छपती थीं। हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा।
मुख्य विषय
कविता वर्षा-बहार का मुख्य विषय वर्षा ऋतु की सुंदरता और प्रकृति में उसके प्रभाव का वर्णन है। यह कविता वर्षा के कारण होने वाली खुशी, हरियाली, और जीवन के उत्साह को दर्शाती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न दृश्यों जैसे बादल, बिजली, हवा, फूल, और जीव-जंतुओं के माध्यम से वर्षा की महिमा को बताया है। यह कविता प्रकृति के प्रति प्रेम और उसकी शोभा को बढ़ाने में वर्षा के महत्व को उजागर करती है।
कविता का सार
कवि मुकुटधर पांडेय ने वर्षा-बहार में वर्षा ऋतु की सुंदरता का चित्रण किया है। कविता में आकाश में छाए घने बादल, चमकती बिजली, गरजते मेघ, और बहते झरनों का वर्णन है। ठंडी हवा के साथ पेड़ों की डालियाँ हिलती हैं, और बगीचों में मालिनें गीत गाती हैं। तालाबों में जलचर जीव खुश होते हैं, और पपीहे गर्मी की तपिश को भूल जाते हैं। मोर जंगल में नृत्य करते हैं, मेंढक मधुर गीत गाते हैं, और गुलाब की खुशबू हवा में फैलती है। बगीचों में खुशी छा जाती है, और हंस सुंदर कतार में चलते हैं। किसान खेतों में गीत गाते हुए काम करते हैं। कवि कहते हैं कि वर्षा की यह अनोखी सुंदरता पूरी दुनिया की शोभा को बढ़ाती है, और प्रकृति का सारा सौंदर्य वर्षा पर निर्भर है।
कविता की व्याख्या
पहला प्रसंग
वर्षा-बहार सब के, मन को लुभा रही है नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है।
व्याख्या: बरसात का मौसम सबको बहुत अच्छा लग रहा है। चारों तरफ हरियाली और ठंडी हवा का सुंदर नज़ारा दिख रहा है। आकाश में काले-घने बादल छा गए हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लग रहे हैं।
दूसरा प्रसंग
बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं पानी बरस रहा है, झरने भी ये बहे हैं।
व्याख्या: बिजली चमक रही है और बादल जोर-जोर से गरज रहे हैं। तेज बारिश हो रही है और पहाड़ों से झरने भी तेज़ी से बहने लगे हैं। ये सब मिलकर वर्षा का सुंदर दृश्य बनाते हैं।
तीसरा प्रसंग
चलती हवा है ठंडी, हिलती हैं डालियाँ सब बागों में गीत सुंदर, गाती हैं मालिनें अब।
व्याख्या: ठंडी हवा के कारण पेड़ों की डालियाँ हिल रही हैं। बगीचों में मालिनें (महिलाएँ) सुंदर गीत गा रही हैं, जो माहौल को और खुशनुमा बनाता है।
चौथा प्रसंग
तालों में जीव जलचर, अति हैं प्रसन्न होते फिरते लखो पपीहे, हैं ग्रीष्म ताप खोते।
व्याख्या: तालाबों में जलचर जीव (जैसे मछलियाँ) बहुत खुश हैं। पपीहे (पक्षी) गर्मी की तपिश को भूलकर इधर-उधर उड़ रहे हैं।
पांचवा प्रसंग
करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे मेंढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे।
व्याख्या: जंगल में मोर नाच रहे हैं, जो बहुत सुंदर दिखता है। मेंढक अपनी टर-टर ध्वनि से मधुर गीत गा रहे हैं, जो सभी को आकर्षित करता है।
छठा प्रसंग
खिलता गुलाब कैसा, सौरभ उड़ा रहा है बागों में खूब सुख से, आमोद छा रहा है।
व्याख्या: गुलाब के फूल पूरी तरह खिल गए हैं और उनकी मीठी खुशबू हवा में फैल रही है। बगीचों में हर जगह आनंद और खुशी का माहौल है।
सातवां प्रसंग
चलते हैं हंस कहीं पर, बाँधे कतार सुंदर गाते हैं गीत कैसे, लेते किसान मनहर।
व्याख्या: हंस सुंदर कतार में चलते हैं, जो बहुत आकर्षक लगता है। किसान खेतों में काम करते हुए मधुर गीत गाते हैं, जो उनके मन को प्रसन्न करता है।
आठवां प्रसंग
इस भाँति है अनोखी, वर्षा बहार भू पर सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके ऊपर।
व्याख्या: कवि कहता है कि बारिश की सुंदरता अनोखी होती है। धरती की सारी सुंदरता और हरियाली बारिश पर ही निर्भर करती है। बारिश के बिना जीवन अधूरा लगता है।
कविता से शिक्षा
इस कविता से हमें यह सिखने को मिलता है कि प्रकृति की हर ऋतु विशेष होती है और जीवन के लिए आवश्यक है। वर्षा ऋतु न केवल धरती को हरा-भरा बनाती है बल्कि सभी जीवों को आनंद और राहत भी देती है। हमें प्रकृति के इन सुंदर परिवर्तनों का आनंद लेना चाहिए और उनका आदर करना चाहिए।
गिरिधर कविराय अठारहवीं सदी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे। उनकी कुंडलियाँ बहुत लोकप्रिय हैं और लोग इन्हें कहावतों की तरह इस्तेमाल करते हैं। उनकी कविताएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं, जो आम लोगों को आसानी से समझ आती हैं। इनमें जीवन के लिए जरूरी नीतियाँ और घर-परिवार के व्यवहार की बातें शामिल हैं। गिरिधर कविराय ने अपनी रचनाओं में लाठी जैसी चीजों के उपयोग और धन के सही इस्तेमाल जैसे विषयों पर भी लिखा है। उनकी दो प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं: “बिना बिचारे जो करै सो पाछे पछिताय” और “बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेइ।”
मुख्य विषय
कविता का मुख्य विषय है बिना सोचे-समझे काम करने के नुकसान और अतीत को भूलकर भविष्य पर ध्यान देने की सलाह। पहली कुंडलिया बताती है कि जल्दबाजी में किए गए काम से पछतावा होता है और मन को शांति नहीं मिलती। दूसरी कुंडलिया सिखाती है कि पुरानी बातों को भूलकर आगे की योजना बनानी चाहिए और जो सहज हो, उसी पर ध्यान देना चाहिए। ये कविताएँ हमें सही निर्णय लेने और जीवन को सरल रखने की प्रेरणा देती हैं।
कविता का सार
गिरिधर कविराय की ये दो कुंडलियाँ जीवन के लिए महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं।
पहली कुंडलिया: यह बताती है कि बिना सोचे-समझे किया गया काम अपने लिए परेशानी लाता है। लोग उसका मजाक उड़ाते हैं, और मन में बेचैनी रहती है। खाना-पीना, सम्मान और खुशियाँ भी अच्छी नहीं लगतीं। कवि कहते हैं कि जल्दबाजी में किए गए काम का पछतावा हमेशा मन में चुभता रहता है।
दूसरी कुंडलिया: यह सलाह देती है कि बीती बातों को भूल जाना चाहिए और भविष्य की चिंता करनी चाहिए। जो काम आसानी से हो सकता है, उसी पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से कोई हमारा मजाक नहीं उड़ाएगा और मन में शांति रहेगी। कवि कहते हैं कि आगे की सोच और विश्वास से सुख मिलता है, और पुरानी बातों को भूल जाना ही ठीक है।
कविता की व्याख्यापहली कुंडलिया
बिना बिचारे जो करै सो पाछे पछिताय। काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई भी कार्य करता है, उसे बाद में पछताना पड़ता है। ऐसे लोग अपने ही काम को बिगाड़ लेते हैं और अपने ही हाथों अपमान का कारण बनते हैं। परिणाम यह होता है कि दुनिया में उनका मजाक उड़ाया जाता है और वे सबके बीच हँसी का पात्र बन जाते हैं। इसलिए कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार करना जरूरी है।
जग में होत हँसाय चित में चैन न पावै। खान पान सन्मान राग रंग मनहि न भावै॥
व्याख्या: जब लोग किसी का मजाक उड़ाते हैं तो उस व्यक्ति के मन का चैन चला जाता है। उसे मानसिक दुख होता है। फिर न अच्छा खाना अच्छा लगता है, न आदर-सम्मान की बातों में मन लगता है और न ही किसी मनोरंजन या खुशी की चीज़ में रुचि बचती है। यानी उसका पूरा जीवन दुखी और बेचैन हो जाता है।
कह गिरिधर कविराय दुःख कछु टरत न टारे। खटकत है जिय माहि कियो जो बिना बिचारे॥
व्याख्या: गिरिधर कविराय कहते हैं कि बिना सोचे-समझे किए गए काम के कारण जो दुख पैदा होता है, वह जल्दी से खत्म नहीं होता। यह दुख बार-बार मन को कचोटता रहता है और व्यक्ति को अंदर ही अंदर परेशान करता है। इसीलिए हमें हर कार्य को करने से पहले भलीभांति सोच-विचार कर लेना चाहिए।
दूसरी कुंडलिया
बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेइ। जो बनि आवै सहज में ताही में चित देइ॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय यहाँ यह शिक्षा देते हैं कि जो बातें बीत गई हैं, उन्हें भुला देना चाहिए। हमें बार-बार पुराने दुख या गलती को याद करके परेशान नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, हमें भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। जो भी कार्य सहजता से बन जाए, उसी में मन लगाना चाहिए। पुरानी गलतियों पर पछताने के बजाय आगे बढ़ने पर ध्यान देना चाहिए।
ताही में चित देइ बात जोइ बनि आवै। दुर्जन हँसै न कोइ चित में खता न पावै॥
व्याख्या: कवि कहते हैं कि यदि हम अपना ध्यान उन कामों पर लगाएँ जो स्वाभाविक रूप से आसानी से पूरे हो सकते हैं, तो कोई भी बुरा व्यक्ति हम पर हँस नहीं सकेगा। साथ ही, हमारे मन में भी किसी तरह की गलती का बोझ या पछतावा नहीं रहेगा। यानी सोच-समझकर आगे बढ़ने से सम्मान बना रहता है और मन में संतोष रहता है।
कह गिरिधर कविराय यहै कर मन परतीती। आगे को सुख होइ समुझ बीती सो बीती॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय अंत में यह कहते हैं कि मन में इस बात का पक्का विश्वास रखना चाहिए कि बीती बातों को भूलकर यदि हम समझदारी से आगे बढ़ेंगे, तो भविष्य में सुख और सफलता मिलना निश्चित है। पुराने दुखों को भूलकर जो व्यक्ति आगे की सोचता है, वही जीवन में आनंद और शांति प्राप्त कर सकता है।
कविता से शिक्षा
गिरिधर कविराय की ये कुंडलियाँ सरल शब्दों में जीवन के बड़े सबक सिखाती हैं। पहली कुंडलिया हमें जल्दबाजी से बचने और सोच-समझकर काम करने की सलाह देती है, ताकि पछतावे से बचा जा सके। दूसरी कुंडलिया अतीत को भूलकर भविष्य पर ध्यान देने और सरल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। ये कविताएँ हमें सिखाती हैं कि सही निर्णय और धैर्य से जीवन में सुख और शांति पाई जा सकती है। ये कुंडलियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित भी करती हैं।
स्वयं प्रकाश हिंदी के प्रसिद्ध लेखक थे। उनका जन्म 1947 में हुआ और 2019 में उनका निधन हो गया। उनकी कहानियाँ बच्चों और बड़ों दोनों को बहुत पसंद आती हैं। उनकी कहानियाँ पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कोई दोस्त अपनी बातें सुना रहा हो। उनकी कहानियाँ मनोरंजन के साथ-साथ सोचने और समझने की नई दिशाएँ देती हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं: मात्रा और भार, अगली किताब, ज्योति रथ के सारथी और फीनिक्स। उनकी कहानियों में साहस, दोस्ती और जीवन के छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को बहुत रोचक तरीके से दिखाया गया है।
मुख्य विषय
कहानी का मुख्य विषय है बच्चों की शरारत, बीमारी का बहाना बनाना और उससे मिलने वाला सबक। यह कहानी बताती है कि झूठ बोलकर स्कूल से छुट्टी लेना कितना गलत हो सकता है। यह बच्चों को ईमानदारी, मेहनत और जिम्मेदारी का महत्व सिखाती है। साथ ही, यह दिखाती है कि बीमारी का बहाना बनाना आसान लग सकता है, लेकिन इसके परिणाम बोरियत, भूख और पछतावे के रूप में सामने आते हैं।
कहानी की मुख्य घटनाएँ
नानी के साथ अस्पताल जाना और वहाँ का शांत वातावरण देखना।
बीमार होने का सपना देखना।
स्कूल से छुट्टी के लिए झूठ बोलना और बीमार होने का बहाना बनाना।
घर में अकेले रहना, ऊबना और भूख से परेशान होना।
मन में खाने और खेलने की इच्छा होना।
एहसास होना कि बीमार होने में कोई मजा नहीं है।
भविष्य में कभी झूठ न बोलने का निश्चय करना।
कहानी का सार
कहानी नहीं होना बीमार एक बच्चे की शरारत भरी कहानी है, जो स्वयं प्रकाश ने बहुत ही रोचक और मजेदार तरीके से लिखी है। यह कहानी एक छोटे बच्चे के दृष्टिकोण से है, जो स्कूल जाने से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाता है, लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
कहानी की शुरुआत तब होती है जब बच्चा अपनी नानी के साथ पड़ोसी सुधाकर काका को देखने अस्पताल जाता है। यह उसका अस्पताल जाने का पहला अनुभव था। वहाँ उसे अस्पताल का माहौल बहुत अच्छा लगता था। साफ-सुथरे बिस्तर, हरे पेड़, शांति और कोई शोर नहीं था, जो उसे बहुत आकर्षित करता था। सुधाकर काका को नानी द्वारा साबूदाने की खीर खिलाई जाती थी, जिसे देखकर बच्चा सोचता था कि बीमार होना कितना मजेदार है। उसे लगता था कि बीमार लोग बिना मेहनत के आराम करते हैं और स्वादिष्ट खाना खाते हैं। वह सोचता था, “काश! मैं सुधाकर काका की जगह होता!”
कुछ दिन बाद बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं करता था। उसने होमवर्क भी नहीं किया था और उसे डर था कि स्कूल में सजा मिलेगी। वह सोचता था कि बीमारी का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी ले लेगा। वह रजाई में लेटा रहता था और नानी को कहता था कि उसे सिरदर्द, पेट दर्द और बुखार है। नानी उसकी बात मान लेती थी और नानाजी को बुलाती थी। नानाजी उसका माथा छूते थे और नब्ज देखकर कहते थे कि बुखार नहीं है, लेकिन फिर भी उसे कड़वी दवा और काढ़ा पीने को देते थे। वे कहते थे कि उसे आज कुछ खाना नहीं देना है, सिर्फ आराम करना है।
बच्चा रजाई में पड़ा-पड़ा दिनभर बोर होता था। वह घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता था, जैसे छोटे मामा का नहाना, कुसुम मौसी का कॉलेज जाना और मन्नू का जूता ढूँढ़ना। धीरे-धीरे घर में सब चले जाते थे और वह अकेला रह जाता था। उसे भूख लगती थी, लेकिन वह नानी से कुछ मांगने से डरता था क्योंकि नानाजी कहते थे कि भूखे रहने से बीमारी ठीक होती है। वह साबूदाने की खीर, कचौड़ी, गोलगप्पे और बेसन की चिक्की जैसी चीजों के बारे में सोचता रहता था। उसे लगता था कि साबूदाने की खीर सिर्फ बीमारी या उपवास में ही क्यों बनती है।
दिन बढ़ने पर उसे और बोरियत होती थी। उसकी पीठ लेटे-लेटे दुखने लगती थी। वह बाहर की चहल-पहल देखना चाहता था, लेकिन बीमारी का बहाना बनाए रखने के लिए लेटा रहता था। दोपहर में मन्नू स्कूल से आता था और परिवार खाना खाने बैठता था। बच्चा रसोई से दाल-चावल, तली हुई हरी मिर्च और आम की खुशबू सूंघता था। वह चुपके से रसोई तक जाता था और देखता था कि मन्नू आम चूस रहा है। उसे गुस्सा, जलन और पछतावा होता था कि उसने बीमारी का बहाना क्यों बनाया।
आखिरकार, उसे दिनभर भूखा रहना पड़ता था। वह थक जाता था और सोचता था कि स्कूल जाना बेहतर था। उसे सजा मिलती तो भी रिसेस में नमक-मिर्च वाले अमरूद खाने को मिलते। वह पछताता था और फैसला करता था कि अब वह कभी स्कूल से छुट्टी लेने के लिए बीमारी का बहाना नहीं बनाएगा।
कहानी से शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ बोलना बुरी आदत है। बीमारी का बहाना बनाना केवल परेशानी और दुख लाता है। हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। स्वस्थ रहना और स्कूल या काम पर जाना जीवन का सही तरीका है।
शब्दार्थ
वॉर्ड: अस्पताल का कमरा, जहाँ मरीज रहते हैं।
सिरहाना: बिस्तर का वह हिस्सा, जहाँ सिर रखा जाता है।
गुनगुना: धीमी और अस्पष्ट आवाज में बात करना।
नर्स: मरीजों की देखभाल करने वाली महिला।
साबूदाने: सागो के पेड़ से बनने वाला खाने का दाना, जो बीमारी या उपवास में खाया जाता है।
रजाई: रुई भरा हुआ गर्म ओढ़ने का कंबल।
काढ़ा: जड़ी-बूटियों को उबालकर बनाया गया पेय, जो बीमारी में पिया जाता है।
अनुपम मिश्र एक प्रसिद्ध लेखक, संपादक, पर्यावरणविद् और छायाकार थे। उनका जन्म 1948 में हुआ था और 2016 में उनका निधन हो गया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ है, जिसका अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है। इसके अलावा, ‘साफ माथे का समाज’ उनकी एक और महत्वपूर्ण रचना है। वे गांधी मार्ग पत्रिका के संस्थापक और संपादक भी थे, जो गांधी शांति प्रतिष्ठान से प्रकाशित होती थी।
मुख्य विषय
इस पाठ का मुख्य विषय है—पानी की कमी, जल-चक्र, और जल संरक्षण का महत्व। यह पाठ हमें समझाता है कि पानी हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है और इसे बचाने के लिए हमें क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। लेखक ने पानी की तुलना धरती की गुल्लक में जमा होने वाले खजाने से की है और बताया है कि तालाब, झीलें और नदियाँ इस खजाने को बढ़ाने में सहायक होती हैं। यह पाठ हमें अकाल और बाढ़ जैसी समस्याओं से बचने के लिए जल संरक्षण के उपाय सिखाता है।
कहानी की मुख्य घटनाएँ
जल-चक्र का चित्रण: समुद्र से भाप बनना, बादल बनना, बारिश होना और पानी का फिर समुद्र में मिलना।
पानी की कमी: गर्मी में नल सूखना, मोटर लगाकर पानी खींचना, पानी बिकने लगना।
पानी की अधिकता: बारिश के समय बाढ़ आना, घर-स्कूल-सड़क सब डूब जाना।
पुराने जलस्रोतों का नुकसान: तालाबों और झीलों को नष्ट करना।
समाधान का सुझाव: जलस्रोतों की रक्षा करना और जल-चक्र को सही ढंग से समझना।
कहानी का सार
पानी रे पानी पाठ में लेखक अनुपम मिश्र जल-चक्र और पानी की कमी की समस्या को बहुत सरल और रोचक तरीके से समझाते हैं। वे बताते हैं कि जल-चक्र प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें समुद्र का पानी भाप बनकर बादल बनता है, फिर बारिश के रूप में धरती पर आता है और नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र किताबों में तो बहुत सुंदर लगता है, लेकिन असल जिंदगी में पानी का एक अजीब चक्कर बन गया है।
शहरों, गाँवों, स्कूलों, खेतों और कारखानों में पानी की कमी एक बड़ी समस्या बन गई है। नलों में पानी समय पर नहीं आता, और जब आता है तो देर रात या सुबह जल्दी। नल खोलने पर सिर्फ साँय-साँय की आवाज आती है। इस कमी को पूरा करने के लिए लोग मोटर लगाकर पानी खींचते हैं, जिससे आसपास के घरों का पानी कम हो जाता है। इससे झगड़े भी होने लगते हैं। बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में भी पानी की कमी लोगों को परेशान करती है। गर्मियों में तो अकाल जैसे हालात बन जाते हैं।
वहीं, बारिश के मौसम में इतना पानी बरसता है कि सड़कें, घर और स्कूल पानी में डूब जाते हैं। बाढ़ आती है, जो गाँवों और शहरों को नुकसान पहुँचाती है। लेखक कहते हैं कि अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हम जल-चक्र को ठीक से समझें और पानी को सही तरीके से संभालें, तो इन समस्याओं से बच सकते हैं।
लेखक पानी की तुलना पैसे से करते हैं और धरती को एक बड़ी गुल्लक बताते हैं। जैसे हम गुल्लक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही बारिश के पानी को तालाबों, झीलों और नदियों में जमा करना चाहिए। यह पानी धीरे-धीरे जमीन के नीचे भूजल भंडार में जाता है, जो साल भर हमारे काम आता है। लेकिन हमने लालच में तालाबों को कचरे से भर दिया और उन पर मकान, बाजार और स्टेडियम बना दिए। इस गलती की सजा अब हमें मिल रही है—गर्मियों में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं।
लेखक सुझाव देते हैं कि हमें जल-चक्र को समझना होगा। बारिश का पानी तालाबों और झीलों में जमा करना होगा, भूजल भंडार को सुरक्षित रखना होगा और जलस्रोतों की अच्छे से देखभाल करनी होगी। तभी हम पानी की कमी से बच सकते हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो पानी के चक्कर में फँसते चले जाएँगे।
कहानी से शिक्षा
यह पाठ हमें सिखाता है कि जल ही जीवन है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमें अपने पुराने तालाबों, झीलों और नदियों को बचाना चाहिए। बारिश के पानी को संचित कर धरती के जल भंडार को भरना चाहिए ताकि हमें भविष्य में पानी की कमी या बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। हमें अपनी धरती को एक बड़ी गुल्लक की तरह समझकर उसमें पानी बचाना चाहिए।
शब्दार्थ
जल-चक्र: पानी का प्राकृतिक चक्र, जिसमें पानी भाप बनकर बादल बनता है, बारिश के रूप में गिरता है और नदियों के रास्ते समुद्र में जाता है।
गुल्लक: मिट्टी या धातु का बर्तन, जिसमें पैसे जमा किए जाते हैं।
भूजल: जमीन के नीचे जमा पानी।
अकाल: सूखा, जब पानी की बहुत कमी हो।
बाढ़: बारिश के कारण पानी का ज्यादा बहाव, जिससे बस्तियाँ डूब जाती हैं।
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में हुआ था। उनकी कविताएँ सरल और बच्चों के लिए रोचक होती थीं। उन्होंने बच्चों के लिए कई कविता-संग्रह लिखे, जैसे चंद्र-खिलौना और खेल-तमाशा। उनकी सबसे मशहूर रचना प्रियप्रवास है, जिसे हिंदी का पहला खड़ी बोली महाकाव्य माना जाता है। उनकी कविता फूल और काँटा कक्षा 7 की पाठ्यपुस्तक मल्हार में शामिल है।
मुख्य विषय
कविता का मुख्य विषय है लोगों के स्वभाव में अंतर और समानता। कवि फूल और काँटे के उदाहरण से बताते हैं कि एक ही पौधे पर उगने वाले फूल और काँटे, भले ही एक जैसी परिस्थितियों में पलते हों, उनके गुण और व्यवहार अलग-अलग होते हैं। यह कविता यह सिखाती है कि व्यक्ति का सम्मान उसके कुल या जन्म से नहीं, बल्कि उसके गुणों और कार्यों से होता है।
कविता का सार
कविता ‘फूल और काँटा’ में कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ एक ही पौधे पर उगने वाले फूल और काँटे की तुलना करते हैं। वे बताते हैं कि फूल और काँटा एक ही जगह जन्म लेते हैं, एक ही पौधा उन्हें पालता है, और उन्हें एक जैसी चाँदनी, बारिश और हवा मिलती है। फिर भी, उनके स्वभाव और व्यवहार बिल्कुल अलग होते हैं।
काँटा उँगलियाँ छेदता, कपड़े फाड़ता, और तितलियों-भौंरों को चोट पहुँचाता है। यह सबकी आँखों में खटकता है और किसी को पसंद नहीं आता। दूसरी ओर, फूल अपनी सुंदरता, सुगंध और कोमलता से तितलियों को अपनी गोद में बिठाता है, भौंरों को अपना मीठा रस पिलाता है, और अपनी खुशबू से कली को खिलाता है। फूल सुर शीश पर सजता है और सभी को आनंद देता है।
कवि कहते हैं कि इसी तरह, लोग एक ही परिवार या समाज में जन्म लेते हैं, लेकिन उनके गुण और व्यवहार अलग होते हैं। व्यक्ति का बड़प्पन उसके कुल से नहीं, बल्कि उसके अच्छे गुणों और कार्यों से तय होता है। अगर किसी में बड़प्पन की कमी है, तो कुल की बड़ाई उसके लिए कोई काम नहीं आती। कविता हमें सिखाती है कि हमें फूल की तरह अच्छे गुण अपनाने चाहिए, न कि काँटे की तरह दूसरों को चोट पहुँचानी चाहिए।
कविता की व्याख्या
पहला प्रसंग
हैं जनम लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता। रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि फूल और काँटा एक ही पौधे पर जन्म लेते हैं और एक ही पौधा उन्हें पालता है। रात में चाँद दोनों पर एक जैसी चाँदनी बिखेरता है। यह दर्शाता है कि दोनों को एक जैसी परिस्थितियाँ मिलती हैं।
दूसरा प्रसंग
मेह उन पर है बरसता एक सा, एक सी उन पर हवायें हैं बही। पर सदा ही यह दिखाता है हमें, ढंग उनके एक से होते नहीं।
व्याख्या: बारिश और हवा दोनों पर एक समान बरसती और बहती है। फिर भी, फूल और काँटे के स्वभाव अलग-अलग होते हैं। यह बताता है कि परिस्थितियाँ एक जैसी होने के बावजूद गुण और व्यवहार में अंतर होता है।
तीसरा प्रसंग
छेद कर काँटा किसी की उँगलियाँ, फाड़ देता है किसी का वर बसन। प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर, भौंर का है बेध देता श्याम तन।
व्याख्या: काँटा अपनी नुकीली प्रकृति से उँगलियाँ छेदता है, कपड़े फाड़ता है, तितलियों के पंख काटता है, और भौंरों को चोट पहुँचाता है। यह दर्शाता है कि काँटे का स्वभाव दूसरों को नुकसान पहुँचाने वाला होता है।
चौथा प्रसंग
फूल लेकर तितलियों को गोद में, भौंर को अपना अनूठा रस पिला। निज सुगंधों औ निराले रंग से, है सदा देता कली जी की खिला।
व्याख्या: फूल अपनी कोमलता से तितलियों को अपनी गोद में बिठाता है, भौंरों को मीठा रस देता है, और अपनी सुगंध व रंगों से कली को खिलाता है। यह फूल के दयालु और आनंददायक स्वभाव को दर्शाता है।
पांचवा प्रसंग
है खटकता एक सब की आँख में, दूसरा है सोहता सुर शीश पर। किस तरह कुल की बड़ाई काम दे, जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।
व्याख्या: काँटा सबकी आँखों में खटकता है, जबकि फूल सिर पर सजकर सुंदर लगता है। कवि कहते हैं कि अगर व्यक्ति में अच्छे गुण नहीं हैं, तो उसके कुल की बड़ाई बेकार है। बड़प्पन गुणों से आता है, न कि जन्म से।
कविता से शिक्षा
कविता फूल और काँटा हमें सिखाती है कि व्यक्ति का बड़प्पन उसके गुणों और व्यवहार से तय होता है, न कि उसके जन्म या परिवार से। फूल और काँटे के उदाहरण से कवि यह बताते हैं कि एक ही परिस्थिति में पलने वाले लोग अपने स्वभाव के कारण अलग होते हैं। फूल की तरह हमें दूसरों को खुशी देना चाहिए, न कि काँटे की तरह चोट पहुँचानी चाहिए। यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हम अपने अच्छे गुणों से समाज में सम्मान और प्यार पाएँ।