01. भारतीयसन्त्तगीतिः  – Worksheet   

अधोलिखितेषु प्रश्नेषु उचित विकल्पस्य चयनं कुरुत ।

1. ‘भारतीवसन्तगीतिः’ इति काव्यांशः कस्य गीतसङ्ग्रहात् गृहीतः?
(i)
 ‘काकली’
(ii) ‘मेघदूतम्’
(iii) ‘साकेतम्’
(iv) ‘गीताञ्जलिः’

2. “नवीनामये वाणि! वीणां निनादय” इत्यत्र ‘वाणि’ इति कया देवत्याऽभिधीयते?
(i)
 सरस्वती
(ii) लक्ष्मी
(iii) दुर्गा
(iv) पार्वती

3. ‘कलिन्दात्मजा’ इति पदेन का नदी सूच्यते?
(i) 
गङ्गा
(ii) यमुना
(iii) गोदावरी
(iv) सरस्वती

4. ‘रसालाः’ इति शब्दः कं बोधयति?
(i)
 आम्रवृक्षान्
(ii) अशोकवृक्षान्
(iii) चम्पकवृक्षान्
(iv) कदलीवृक्षान्

5. अयं काव्यः कस्मिन् ऋतौ प्रकृतेः सौन्दर्यं विशेषेण वर्णयति?
(i)
 शरदि
(ii) वसन्ते
(iii) हेमन्ते
(iv) वर्षासु

कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थाने लिखत। 

1. वसन्ते __________ काकली सर्वत्र श्रूयते। (कोकिलायाः / चातकस्य)

2. मलयमारुतः __________ स्पृशति। (ललितपल्लवान् / शुष्कशिलाखण्डान्)

3. ‘कलिन्दात्मजायाः’ __________ तीरे लतापङ्क्तिः दृश्यते। (जलस्य / मरुभूमेः)

4. हे वाणि! त्वं __________ वीणां निनादय। (नवीनामये / जीर्णायाम्)

5. अस्मिन्न् काव्ये __________ भावना प्रबोध्यते। (राष्ट्रीयजागरणभावना / निरुत्साहभावना)

अधोलिखितानि प्रश्नानि उत्तराणि एकपदेन लिखत । 

1. ‘कलिन्दात्मजा’ इति कस्य नाम?

2.  ‘रसालाः’ इति कः वृक्षवर्गः?

3. ‘अलीनम्’ इति पदेन के निर्दिश्यन्ते?

4. कस्य सम्बोधनेन “वाणि” इत्युक्तम्?

5. ‘काकली’ किम्?

अधोलिखितानि प्रश्नानि उत्तराणि ३–४ पङ्क्तिषु पूर्णवाक्यरूपेण लिखत। 

1. ‘भारतीवसन्तगीतिः’ इत्यस्य मुख्यभावः कः? वसन्तऋतेः सौन्दर्यं कथं चित्रितम् इति वर्णयत।

2. कविः ‘नवीनां वीणां निनादय’ इति किमर्थं वाणीं प्रार्थयति? तस्य सामाजिको राष्ट्रीयश्च सन्देशः कः?

3. यमुनातीरे (कलिन्दात्मजायाः तीरे) काः काः प्राकृतिकाः शोभाः दृश्यन्ते? लताः, पल्लवाः, मधुमाधवी इत्यादीन् वर्णयत।

4. मलयमारुतस्य प्रभावः काव्ये कथं निरूपितः? पुष्पपुञ्जेषु, मञ्जुकुञ्जेषु, अलीस्वने च किं दृश्यते?

5. अस्य काव्यस्य भाषाशिल्पे रूपके, अनुप्रासे, ध्वनौ वा यथायोग्यं उदाहरणैः ३–४ पङ्क्तिषु विवृणुत।

12. वायुमनः प्राणस्वरूपम् – Summary 

प्रस्तुत पाठ पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबंध है। आज मनुष्य का वातावरण बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में मानव का सर्वाधिक योगदान है। मनुष्य ने अपनी दुर्बुद्धिवश जल, मृदा, वायु आदि को प्रदूषित कर दिया है। 

कारखानों का विषाक्त कचरा जल में डाला जाता है। इससे जल पीने योग्य नहीं रह जाता है, जबकि जल मनुष्य की महती आवश्यकता है। प्रतिदिन वृक्षों को काटा जा रहा है। इस प्रकार हरियाली का नाश हो रहा है। इससे मनुष्य को शुद्ध वायु उपलब्ध नहीं होती है। वाहनों की होड़ भी वायु को प्रदूषित कर रही है। वाहनों के धुएँ से वायु अत्यधिक जहरीली हो चुकी है। इसमें न केवल मानव अपितु अन्य जीवों का भी जीवित रहना कठिन हो गया है। मनुष्य को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। अधिकाधिक वृक्षों का रोपण करना चाहिए। वृक्षों की कटाई शीघ्र बंद करनी चाहिए। जल के स्रोतों को प्रदूषण मुक्त करना चाहिए। ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिए। सभी प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए। इन कदमों से ही मानव-जीवन सुखद बनेगा।

11. पर्यावरणम्  – Summary              

प्रस्तुत पाठ पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबंध है। आज मनुष्य का वातावरण बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में मानव का सर्वाधिक योगदान है। मनुष्य ने अपनी दुर्बुद्धिवश जल, मृदा, वायु आदि को प्रदूषित कर दिया है। 

कारखानों का विषाक्त कचरा जल में डाला जाता है। इससे जल पीने योग्य नहीं रह जाता है, जबकि जल मनुष्य की महती आवश्यकता है। प्रतिदिन वृक्षों को काटा जा रहा है। इस प्रकार हरियाली का नाश हो रहा है। इससे मनुष्य को शुद्ध वायु उपलब्ध नहीं होती है। वाहनों की होड़ भी वायु को प्रदूषित कर रही है। वाहनों के धुएँ से वायु अत्यधिक जहरीली हो चुकी है। इसमें न केवल मानव अपितु अन्य जीवों का भी जीवित रहना कठिन हो गया है। मनुष्य को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। अधिकाधिक वृक्षों का रोपण करना चाहिए। वृक्षों की कटाई शीघ्र बंद करनी चाहिए। जल के स्रोतों को प्रदूषण मुक्त करना चाहिए। ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिए। सभी प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए। इन कदमों से ही मानव-जीवन सुखद बनेगा।

10 .जटायोः शौर्यम्   – Summary          

प्रस्तुत पाठ महाकाव्य ‘रामायणम्’ के अरण्यकांड से लिया गया है। इस महाकाव्य के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि हैं। इस पाठ में जटायु और रावण के मध्य युद्ध का वर्णन है। 

पाठ का सार इस प्रकार है पंचवटी में सीता करुण विलाप करती है। उसके विलाप को सुनकर, पक्षिराज जटायु उसकी रक्षा के लिए आता है। वह रावण को धिक्कारता है, परंतु रावण पर इसका कोई असर नहीं होता है। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देखकर जटायु उसके साथ युद्ध के लिए उद्यत हो जाता है। यद्यपि रावण युवा है और जटायु वृद्ध तथापि वह रावण को ललकारता है और कहता है कि मेरे जीवित रहते तुम सीता का अपहरण नहीं कर सकते। जटायु अपने पैने नाखूनों और पंजों से रावण पर आक्रमण करता है और उसके शरीर पर अनेक घाव कर देता है। जटायु रावण के धनुष को तोड़ डालता है। इस प्रकार रावण रथ से विहीन, नष्ट घोड़ों और सारथी वाला हो जाता है। जटायु पर रावण लात से प्रहार करता है। जटायु हार नहीं मानता है तथा बदले में रावण पर आक्रमण करता है। वह रावण की दशों भुजाओं को उखाड़ डालता है। इस प्रकार इस पाठ में जटायु की शूरवीरता की कहानी कही गई है।

09. सिकतासेतुः  – Summary                

यह पाठ ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक से लिया गया है। मूलतः यह सोमदेव की रचना है। इसमें तपोदत्त नामक एक बालक तपस्या के बल पर विद्या प्राप्त करना चाहता है। 

तपोदत्त को एक व्यक्ति मिला जो बालू के द्वारा नदी पर पुल बना रहा था। वह यह देखकर उसका उपहास करने लगा। वह व्यक्ति तपोदत्त से कहने लगा कि जो व्यक्ति बिना अक्षर ज्ञान के विद्या प्राप्त करना चाहता है, वह व्यक्ति कहीं ज्यादा मूर्ख है। मैं जिस कार्य में लगा हुआ है, उसमें मुझे एक दिन सफलता अवश्य मिल जाएगी, परन्तु जो परिश्रम विद्या प्राप्त करना चाहता है, वह कभी सफल नहीं हो सकता। यह सुनकर तपोदत्त को बड़ी आत्मग्लानि हुई। वह पश्चाताप करने लगा। उसने उस व्यक्ति से कहा कि आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। मैं आज से ही परिश्रम करूँगा। यह कहकर वह गुरुकुल में चला गया और विद्याभ्यास के द्वारा विद्वान बन गया।

    08. लोहितुला – Summary              

प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक ग्रंथ के ‘मित्र भेद’ नामक तंत्र से लिया गया है। इसके रचयिता विष्णुशर्मा हैं। इस कथा में लोभ के दुष्परिणाम को दिखाया गया है। कथासार इस प्रकार है किसी स्थान पर जीर्णधन नामक व्यापारी रहता था। वह धन कमाने के उद्देश्य से दूसरे देशों को जाया करता था। एक बार उसने अपने पूर्वजों के द्वारा कमाई हुई लोहे की तराजू को एक सेठ के यहाँ धरोहर रख दिया। वह विदेश से आकर उस सेठ से अपनी धरोहर वापस माँगने लगा तो उस सेठ ने कहा कि उसे तो चूहों ने खा लिया।
यह सुनकर जीर्णधन सेठ को पाठ पढ़ाने की एक युक्ति सोची। वह नहाने का बहाना करके उस सेठ के पुत्र को अपने साथ ले गया और उसको एक गुफा में छिपाकर वापस लौट आया। सेठ ने उससे अपने पुत्र के विषय में पूछा तो उसने कहा कि बच्चे को बाज उठा ले गया। यह सुनकर उसने जीर्णधन को बुरा-भला कहा तथा उससे झगड़ते हुए न्यायालय पहुँच गया। न्यायाधिकारी ने विवाद की सच्चाई जानकर सेठ को लोहे की वह तराजू लौटाने का आदेश दिया। अपने तराजू को पाकर जीर्णधन ने सेठ के बच को वापस कर दिया।

06. भ्रान्तो बालः – Summary              

कहानी का परिचय

‘भ्रान्तो बालः’ पाठ “संस्कृत-प्रौढ़पाठावली” नामक ग्रंथ से लिया गया है। यह एक शिक्षाप्रद कहानी है जिसमें एक ऐसे बालक का वर्णन है जिसे पढ़ाई की जगह खेलने में अधिक रुचि होती है। जब उसके साथी पढ़ाई में लगे होते हैं, वह अकेला रह जाता है और निराश होकर इधर-उधर भटकता है। अंततः उसे यह समझ आता है कि हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त है, और उसे भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। यह कथा हमें समय का सही उपयोग और जिम्मेदारी निभाने की सीख देती है।

कहानी का सारांश

यह कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसे खेलना बहुत पसंद है लेकिन पढ़ाई में रुचि नहीं है। स्कूल जाने के समय वह खेलने के लिए निकलता है, लेकिन कोई भी दोस्त उसके साथ खेलने को तैयार नहीं होता क्योंकि सब अपने काम या पढ़ाई में लगे होते हैं। वह उदास होकर पार्क में चला जाता है और खेलने के लिए भौंरे, चिड़िया और कुत्ते से भी आग्रह करता है, लेकिन सभी उसे मना कर देते हैं क्योंकि वे अपने-अपने जरूरी काम में व्यस्त होते हैं। 

भौंरा फूलों से रस इकट्ठा कर रहा होता है, चिड़िया घोंसला बना रही होती है, और कुत्ता अपने मालिक के घर की रक्षा कर रहा होता है। सबके इन जवाबों को सुनकर बालक को समझ में आता है कि इस दुनिया में हर कोई अपने कार्य को महत्व देता है। उसे अपने आलस्य पर शर्म आती है और वह जल्दी से स्कूल चला जाता है। वहां से उसकी पढ़ाई में रुचि बढ़ती है और वह विद्वान, प्रसिद्ध और सम्पन्न बनता है।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को समझकर समय का सदुपयोग करना चाहिए। आलस्य और बिना उद्देश्य के समय बिताना हमें पीछे ले जाता है, जबकि मेहनत और लगन से हम आगे बढ़ सकते हैं। जब हर जीव-जंतु भी अपना काम ईमानदारी से करते हैं, तो हमें भी अपने जीवन में जिम्मेदारी और अनुशासन को अपनाना चाहिए।

शब्दार्थ

  • संस्कृत शब्द – हिंदी अर्थ
  • भ्रान्तः – भटकता हुआ / भ्रमित
  • बालः – लड़का
  • तन्द्रालुः – आलसी
  • उद्यानम् – बाग़ / पार्क
  • मधुकरः – भौंरा
  • चटकपोतः – चिड़िया
  • नीडम्घों – सला
  • कुक्कुरः – कुत्ता
  • रक्षानियोगः – सुरक्षा का कार्य
  • स्वामिन्मा – लिक
  • पोषयति – पालता है
  • भग्नमनोरथः – टूटी हुई इच्छा वाला
  • वैदुषी – विद्वता / विद्वान होना
  • कुत्सा – निंदा / घृणा
  • सार्थकः – सफल / अर्थपूर्ण

05 . सूक्तिमौक्तिकम् – Summary    

नीति-ग्रंथों की दृष्टि से संस्कृत साहित्य काफी समृद्ध है। इन ग्रंथों में सरल और सारगर्भित भाषा में नैतिक शिक्षाएँ दी गई हैं। इनके द्वारा मनुष्य अपना जीवन सफल और समृद्ध बना सकता है। ऐसे ही मूल्यवान कुछ सुभाषित इस पाठ में संकलित हैं, जिनका सार इस प्रकार है

मनुष्य को अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए। धन नश्वर है। वह कभी आता है तो कभी चला
जैसा व्यवहार स्वयं को अच्छा न लगे, वैसा व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।
मीठे बोल सभी को प्रिय लगते हैं। अतः मीठा बोलना चाहिए। मनुष्य को बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
महापुरुष अपने लिए कुछ नहीं करते हैं। वे सदा परोपकार करते रहते हैं। कारण कि महापुरुषों का पृथ्वी पर आगमन परोपकार के लिए ही होता है।
मनुष्य को गुणों के लिए यत्न करना चाहिए। गुणों के द्वारा वह महान बनता है। . सज्जन लोगों की मित्रता स्थायी होती है, जबकि दुर्जन लोगों की मित्रता अस्थायी।
हंस तालाब की शोभा होते हैं। यदि किसी तालाब में हंस नहीं हैं तो यह उस तालाब के लिए हानिकर है।

गुणज्ञ व्यक्ति को पाकर गुण गुण बन जाते हैं, परंतु निर्गुण को प्राप्त करके वे ही गुण दोष बन जाते हैं।

04. कल्पतरुः – Summary         

‘वेतालपञ्चविंशतिः’ मनोहर एवं आश्चर्यजनक घटनाओं से युक्त कथाओं का अनोखा संग्रह है। प्रस्तुत पाठ इसी संग्रह से लिया गया है। इसके द्वारा जीवन-मूल्यों की स्थापना की गई है। इस कथा में पर्वतराज हिमालय के शिखर पर स्थित कंचनपुर नामक नगर का वर्णन किया गया है। उसमें जीमूतकेतु नाम का विद्याधरों का स्वामी रहता था। उसके उद्यान में कल्पतरु वृक्ष था। जीमूतकेतु के यहाँ जीमूतवाहन नाम का पुत्र हुआ। वह स्वभाव से अत्यधिक दयालु और परोपकारी था। एक दिन उसने मंत्री जनों की सभा की और उनसे अपने हित की बात पछी। सभी ने कहा कि वंश परंपरा से प्राप्त है। यह सभी मनोरथों को पूरा करने वाला है। तुम इसकी आराधना करो। तब जीमूतवाहन ने अपने पिता के पास जाकर कहा कि मैं इस कल्पवृक्ष से अपने मनोरथों की पूर्ति चाहता हूँ। उसके पिता ने उसको कल्पवृक्ष की आराधना करने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर प्रार्थना किया-देव, आप मेरी इच्छा पूर्ति करें। मेरी इच्छा है कि इस पृथ्वी पर कोई भी निर्धन न बचे। यह सुनकर कल्पवृक्ष ने प्रसन्न होकर धन की वर्षा की। इससे जीमूतवाहन का यश सर्वत्र फैल गया।

03. गोदोहन्म् – Summary         

यह नाटयांश कृष्णचंद्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से सम्पादित करके लिया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा है जो धनी और सुखी होने की इच्छा से प्रेरित होकर एक महीने के लिए गाय का दूध निकालना बंद कर देता है ताकि गाय के शरीर में इकट्ठा पर्याप्त दूध एक ही बार में बेचकर सम्पत्ति कमाने में समर्थ हो सके।

परन्तु मास के अन्त में जब वह दूध दुहने का प्रयत्न करता है तब वह दूध की बूंद भी प्राप्त नहीं कर पाता है। दूध प्राप्त करने के स्थान पर वह गाय के प्रहारों द्वारा खून से लथपथ हो जाता है और जान जाता है कि प्रतिदिन का कार्य यदि मास भर के लिए इकट्ठा किया जाता है तब लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।