Chapter 06 meree maan notes
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November 6, 2024Chapter Notes: जलाते चलो
परिचय
‘जलाते चलो’ कविता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित है। यह कविता अंधकार को मिटाने के लिए प्रेम और प्रकाश के महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस कविता के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि हमें स्नेह और प्रेम के दीयों को जलाते रहना चाहिए ताकि किसी दिन धरा का अंधकार अवश्य मिट सके।
कहानी का सार
इस कविता में कवि ने विज्ञान की शक्तियों की तुलना स्नेह और प्रेम से की है। विज्ञान में इतनी शक्ति है कि वह अमावस की रात को पूर्णिमा की रात में बदल सकता है, लेकिन आज के समय में, दिन में भी अमावस की रात जैसी अंधकार छाई हुई है। बिना स्नेह के विद्युत से जलने वाले दीयों से मार्ग नहीं मिल सकता, इसलिए स्नेह से भरपूर दीयों को जलाना आवश्यक है।
कवि याद दिलाते हैं कि जब पहली बार तिमिर (अंधकार) की चुनौती स्वीकार की गई थी, तब पहले दीप को जलाया गया था। उस समय तिमिर की नदी को पार करने के लिए दीप की नाव तैयार की गई थी। अब भी हमें उस नाव को बहाते रहना चाहिए, ताकि किसी दिन तिमिर का किनारा मिल सके।
कवि बताते हैं कि युगों से अंधकार की शिला पर अनगिनत दीयों को जलाया गया है, और समय ने देखा है कि कैसे अनगिनत दीयों को हवा ने बुझाया है। लेकिन जो ज्योति स्वयं बुझ गई है, उसी से तिमिर को उजाला मिलेगा। यह दीये और तूफान की कहानी चली आ रही है और चलती रहेगी।
कवि यह भी कहते हैं कि जब तक धरा पर एक भी दिया जलता रहेगा, किसी दिन निशा को सवेरा अवश्य मिलेगा। इस प्रकार, कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि प्रेम और स्नेह के दीयों को जलाते रहना चाहिए ताकि किसी दिन अंधकार को मिटाया जा सके।
कहानी की मुख्य घटनाएं:
विज्ञान और स्नेह की तुलना।
अंधकार को मिटाने के लिए स्नेह के दीयों की आवश्यकता।
तिमिर की चुनौती को स्वीकारना।
तिमिर की नदी को पार करने के लिए दीप की नाव बनाना।
युगों से दीयों का जलना और बुझना।
दीये और तूफान की कहानी।
निशा को सवेरा मिलने की उम्मीद।
कहानी से शिक्षा
स्नेह और प्रेम के दीयों को जलाते रहना चाहिए।
अंधकार को मिटाने के लिए स्नेह की आवश्यकता होती है।
कठिनाइयों का सामना करना चाहिए और हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
उम्मीद और धैर्य से काम लेना चाहिए।
शब्दावली
तिमिर – अंधकार
अमावस – बिना चाँद की रात
पूर्णिमा – पूर्ण चाँद की रात
स्नेह – प्रेम
दीप – दिया
सरित – नदी
निशा – रात
ज्योति – प्रकाश
पथ – मार्ग
पवन – हवा
निष्कर्ष
‘जलाते चलो’ कविता में कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने प्रेम और स्नेह के महत्व को रेखांकित किया है। उन्होंने बताया है कि विज्ञान की शक्ति के बावजूद भी, स्नेह और प्रेम के बिना अंधकार को मिटाना संभव नहीं है। हमें स्नेह और प्रेम के दीयों को निरंतर जलाते रहना चाहिए ताकि किसी दिन अंधकार का अंत हो सके और सवेरा हो सके।